“Bihar Cabinet 2025: बिहार चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने सेट किया परिवार, पत्नी बनीं विधायक, बिना चुनाव लड़े और जीते बेटे ने ली मंत्री पद की शपथ”
📍 पटना से रिपोर्ट
बिहार की राजनीति में एक बार फिर परिवारवाद चर्चा का विषय बन गया है। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने इस बार अपने परिवार को सीधे सत्ता के केंद्र में स्थापित कर दिया है।
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🔑 प्रमुख घटनाक्रम
– पत्नी बनीं विधायक:
उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी ने इस बार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की और विधायक बनीं। इससे पार्टी में उनकी पकड़ और मजबूत हुई।
– बेटे को मंत्री पद:
सबसे बड़ी चर्चा इस बात की है कि कुशवाहा के बेटे ने बिना चुनाव लड़े ही मंत्री पद की शपथ ले ली। यह कदम विपक्ष को परिवारवाद का सबसे बड़ा उदाहरण बताने का मौका दे रहा है।


बिना चुनाव लड़े ली मंत्री पद की शपथ
उपेंद्र कुशवाहा के बेटे का नाम दीपक प्रकाश है. उनको नाम और तस्वीर से बहुत ही कम लोग जानते हैं. दीपक प्रकाश कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग कर चुके हैं और एक मल्टीनेशनल कंपनी में भी काम कर चुके हैं. अब वो बिहार की राजनीति में एक्टिव हो गए हैं. एनडीए सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLM ने इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है. पार्टी को मिली छह सीटों में से चार पर वह जीत दर्ज करने में सफल रही.
इसके बावजूद उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री पद के लिए अपने किसी विधायक के बजाय अपने बेटे पर भरोसा दिखाया है, जबकि दीपक प्रकाश फिलहाल किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. उन्हें आगामी छह महीनों के भीतर विधानपरिषद या विधानसभा का सदस्य बनना होगा.
– नीतीश कुमार का मंत्रिमंडल:
शपथग्रहण समारोह में कुल 26 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसमें NDA के सहयोगी दलों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया। इसी क्रम में कुशवाहा परिवार की एंट्री ने सबका ध्यान खींचा।
– विपक्ष का हमला:
राजद और कांग्रेस ने इसे “लोकतंत्र का अपमान” बताते हुए कहा कि बिहार में अब योग्यता से ज्यादा परिवारवाद को महत्व दिया जा रहा है।
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📌 विश्लेषण
बिहार की राजनीति में परिवारवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। लेकिन 2025 के इस मंत्रिमंडल में उपेंद्र कुशवाहा का परिवार सीधे दो पदों पर आसीन हो गया—पत्नी विधायक और बेटा मंत्री। यह घटना बिहार की राजनीति में परिवार आधारित सत्ता संरचना की नई मिसाल बन गई है।
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✍️ निष्कर्ष
नीतीश कुमार के दसवें कार्यकाल की शुरुआत में ही परिवारवाद का मुद्दा गरमा गया है। उपेंद्र कुशवाहा के इस कदम ने बिहार की राजनीति को एक बार फिर “परिवार बनाम लोकतंत्र” की बहस में खड़ा कर दिया है।
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