नई दिल्ली, 23 नवंबर 2025: भारत में श्रमिकों के लिए एक नया दौर शुरू हो गया है। 21 नवंबर को केंद्र सरकार ने चार नए श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) को लागू कर दिया है, जो 29 पुरानी कानूनों को बदल देंगी। ये संहिताएं—वेज कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड—श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी, समय पर भुगतान और सामाजिक सुरक्षा जैसी गारंटियां देती हैं। लेकिन सवाल यह है कि इनसे सैलरी बढ़ेगी या घटेगी? एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह मिश्रित प्रभाव वाला होगा—कुछ मामलों में टेक-होम पे कम हो सकता है, लेकिन लंबे समय में सुरक्षा बढ़ने से फायदा होगा। आइए जानते हैं विस्तार से।

वेज स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव: बेसिक पे बढ़ेगा, लेकिन टेक-होम क्यों घट सकता है?
नई संहिताओं के तहत ‘वेज’ की परिभाषा बदल गई है। अब वेज में बेसिक पे, डियरनेस अलाउंस (डीए) और रिटेनिंग अलाउंस शामिल होंगे, जो कुल सैलरी का कम से कम 50% होना चाहिए। यानी अलाउंस (जैसे एचआरए, ट्रांसपोर्ट) अब 50% से ज्यादा नहीं हो सकते। इससे बेसिक पे का हिस्सा बढ़ेगा, जो पीएफ, ग्रेच्युटी और ईएसआई जैसी सामाजिक सुरक्षा पर कैलकुलेशन के लिए फायदेमंद है। लेकिन टेक-होम सैलरी पर असर पड़ेगा, क्योंकि डिडक्शंस (कटौतियां) बढ़ेंगी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इससे श्रमिकों की टेक-होम सैलरी कम हो सकती है, क्योंकि सामाजिक सुरक्षा योगदान का बेस बढ़ जाएगा। साथ ही, सभी श्रमिकों (ऑर्गनाइज्ड और अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर) के लिए न्यूनतम मजदूरी अनिवार्य होगी। केंद्र सरकार एक नेशनल फ्लोर वेज तय करेगी, जिसके नीचे राज्य मजदूरी फिक्स नहीं कर सकेंगे। यह हर 5 साल में रिव्यू होगा। ओवरटाइम पर डबल रेट मिलेगा, और वेज का भुगतान टाइमली होगा—मासिक वेतन 7 दिनों में, टर्मिनेशन पर 2 दिनों में।
, ये बदलाव सभी श्रमिकों को पीएफ, ईएसआई और इंश्योरेंस जैसी सुविधाएं देंगे, जो पहले सीमित थीं। जेंडर न्यूट्रल पे भी सुनिश्चित होगा—एक ही काम के लिए पुरुष-महिला को बराबर वेतन।
एक्सपर्ट्स की राय: लागत बढ़ेगी, नौकरियां खतरे में?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि छोटे-मध्यम उद्यमों के लिए ये कोड चुनौतीपूर्ण होंगे। स्टोरीबोर्ड18 की रिपोर्ट में कामल करंथ (टीमलीज फाउंडर) ने कहा, “छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए वर्कफोर्स कॉस्ट बढ़ने से डाउनसाइजिंग का खतरा बढ़ सकता है। मार्जिन पहले से दबाव में हैं, कर्मचारी खर्च बढ़ने से स्थिति बिगड़ सकती है।” वहीं, गेराल्ड मनोहरन (एचआर एक्सपर्ट) ने इसे “डबल-एज्ड स्वॉर्ड” बताया: “ग्रेच्युटी में छूट से 1 साल तक रिटेंशन आसान होगा, लेकिन 5 साल तक रहने का कोई इंसेंटिव नहीं बचेगा।”
लोहित भाटिया (एचआर कंसल्टेंट) का मानना है कि लेऑफ थ्रेशोल्ड 100 से बढ़कर 300 हो गया है, जिससे मंदी में कंपनियां आसानी से छंटनी कर सकती हैं। रिशि अग्रवाल (एचआर लीडर) ने कहा, “पहले 100 वर्कर्स की लिमिट से बिजनेस छोटे रखे जाते थे, जिससे फॉर्मल जॉब्स कम थीं। अब 19 राज्यों ने पहले ही थ्रेशोल्ड बढ़ाया था, जो फॉर्मल जॉब्स बढ़ाएगा।” लेकिन कुल मिलाकर, एक्सपर्ट्स चेतावनी देते हैं कि कॉस्ट बढ़ने से लेऑफ रुकना मुश्किल होगा।
मनीकंट्रोल की रिपोर्ट में कहा गया है कि गिग वर्कर्स को भी 1-2% टर्नओवर से सामाजिक सुरक्षा मिलेगी, जो अप्रत्यक्ष रूप से उनकी कमाई को सुरक्षित करेगी। हालांकि, बिजनेस टुडे के अनुसार, यूनिफाइड वेज डेफिनिशन से पीएफ और ग्रेच्युटी बढ़ने से टेक-होम पे डिप हो सकता है।
क्या होगा असर? फायदे ज्यादा, लेकिन सतर्क रहें
कुल मिलाकर, एक्सपर्ट्स का कहना है कि सैलरी स्ट्रक्चर रीवाइज होगा—बेसिक बढ़ेगा, लेकिन टेक-होम थोड़ा कम हो सकता है। लंबे समय में न्यूनतम गारंटी और सुरक्षा से श्रमिकों का भला होगा, लेकिन कंपनियां कॉस्ट कटिंग के लिए नौकरियां घटा सकती हैं।
श्रमिकों को सलाह: अपॉइंटमेंट लेटर लें, वेज स्लिप चेक करें और न्यूनतम मजदूरी की जानकारी रखें। सरकार को एक्सपर्ट्स ने सुझाव दिया है कि इंप्लीमेंटेशन में टीथिंग इश्यूज (शुरुआती समस्याएं) हल करने के लिए गाइडलाइंस जारी करे। यह सुधार भारत को ग्लोबल लेबर स्टैंडर्ड्स के करीब ले जाएगा, लेकिन इसका असर अगले कुछ महीनों में साफ होगा।















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