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विधेयकों पर राज्यपाल एवं राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए समयसीमा तय नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर विचार करने के लिए किसी निश्चित समयसीमा में बाँधना संभव नहीं है।

मुख्य बिंदु (10 Presidential References)
- संवैधानिक अधिकार – राष्ट्रपति को विधेयकों पर विचार करने का अधिकार संविधान से प्राप्त है, जिसे समयसीमा में बाँधना संभव नहीं।
- विधायी प्रक्रिया – राष्ट्रपति की मंजूरी विधायी प्रक्रिया का अंतिम चरण है, जो स्वतंत्र रूप से किया जाता है।
- न्यायिक सीमा – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों पर समयसीमा तय नहीं कर सकती।
- संवैधानिक संतुलन – राष्ट्रपति की भूमिका विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखने की है।
- राज्यपाल से संबंध – राज्यपाल द्वारा विधेयक आरक्षित करने पर राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है।
- विचार का अधिकार – राष्ट्रपति के पास विधेयक को मंजूरी देने, अस्वीकार करने या पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार है।
- संवैधानिक परंपरा – राष्ट्रपति की मंजूरी एक संवैधानिक परंपरा है, जिसे समयसीमा से बाधित नहीं किया जा सकता।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया – राष्ट्रपति की भूमिका लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गारंटी देती है, जिसमें जल्दबाज़ी नहीं हो सकती।
- संवैधानिक स्वतंत्रता – राष्ट्रपति का निर्णय स्वतंत्र होता है और किसी बाहरी दबाव या समयसीमा से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
- न्यायालय का निष्कर्ष – सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका का सम्मान करना आवश्यक है और इसे समयसीमा से बाँधना असंवैधानिक होगा।
निष्कर्ष
यह फैसला राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक स्वतंत्रता को रेखांकित करता है। न्यायपालिका ने स्पष्ट किया कि विधेयकों पर विचार करने की प्रक्रिया को समयसीमा में बाँधना लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढाँचे के विपरीत है।
















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