नई दिल्ली, 17 नवंबर 2025 – देशभर में फ़ार्मेसी रिटेल चेन और मेडिकल स्टोर्स पर आरोप लग रहे हैं कि वे दवाइयाँ एमआरपी (Maximum Retail Price) पर बेचकर ग्राहकों को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं। उपभोक्ता अधिकार संगठनों का कहना है कि यह प्रथा तकनीकी रूप से कानूनी है, लेकिन नैतिक रूप से गलत है क्योंकि दुकानदारों को दवाइयों पर भारी मुनाफ़ा मिलता है और वे ग्राहकों को कोई छूट नहीं देते।

📌 एमआरपी क्या है?
- एमआरपी वह अधिकतम कीमत है जो निर्माता तय करता है।
- दुकानदारों को एमआरपी से कम पर बेचने की अनुमति है, लेकिन ज़्यादातर बड़ी फ़ार्मेसी चेन कंपनी पॉलिसी का हवाला देकर छूट नहीं देती।
- छोटे कस्बों के मेडिकल स्टोर अक्सर 5–15% तक छूट देते हैं, जबकि बड़े रिटेल चेन एमआरपी पर ही बेचते हैं।
💰 ग्राहकों पर असर
- ज़रूरी दवाइयाँ जैसे डायबिटीज़, ब्लड प्रेशर और कैंसर की दवाइयाँ एमआरपी पर बेची जाती हैं।
- दुकानदारों को इन दवाइयों पर 20–30% तक का मार्जिन मिलता है, लेकिन ग्राहकों को कोई लाभ नहीं दिया जाता।
- एक सामान्य परिवार को हर महीने ₹5,000–₹10,000 तक दवाइयों पर खर्च करना पड़ता है। बिना छूट के यह खर्च सालाना लाखों तक पहुँच जाता है।
📊 आँकड़े
- भारत का ओटीसी (OTC) दवा बाज़ार 2024 में 5.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और 2030 तक 8.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत में स्वास्थ्य खर्च का लगभग 70% हिस्सा जेब से किया जाता है, यानी बीमा या सरकारी सहायता के बिना।
- ई-फ़ार्मेसी प्लेटफ़ॉर्म जैसे PharmEasy और 1mg अक्सर 10–20% छूट देते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में लोग स्थानीय दुकानों पर निर्भर रहते हैं जहाँ दवाइयाँ एमआरपी पर ही मिलती हैं।
👥 उपभोक्ता शिकायतें
- ग्राहकों का आरोप है कि बड़ी फ़ार्मेसी चेन भ्रामक विज्ञापन करती हैं और “सबसे कम कीमत” का दावा करने के बावजूद एमआरपी पर ही बेचती हैं।
- बुज़ुर्ग और ग्रामीण इलाकों के लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं क्योंकि उन्हें छूट के विकल्पों की जानकारी नहीं होती।
- उपभोक्ता अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह प्रथा “कानूनी लूट” है क्योंकि दुकानदार मरीज़ों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं।
⚖️ कानूनी स्थिति
- Drugs & Cosmetics Act, 1940 के तहत एमआरपी से ज़्यादा पर बेचना अपराध है।
- एमआरपी पर बेचना कानूनी है, लेकिन Consumer Protection Act, 2019 के अनुसार भ्रामक विज्ञापन और पारदर्शिता की कमी को चुनौती दी जा सकती है।
- Competition Commission of India (CCI) को भी शिकायतें मिली हैं कि बड़ी फ़ार्मेसी चेन मिलकर एमआरपी पर ही बेचती हैं।
🌍 व्यापक असर
- परिवारों पर स्वास्थ्य खर्च का बोझ बढ़ रहा है।
- छोटे मेडिकल स्टोर जो छूट देते हैं, वे बड़ी चेन से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।
- जनता का भरोसा टूट रहा है क्योंकि फ़ार्मेसी मुनाफ़े को प्राथमिकता देती हैं, न कि मरीज़ों की ज़रूरतों को।
📰 निष्कर्ष
फ़ार्मेसी रिटेल मर्चेंडाइज़र पर आरोप है कि वे एमआरपी पर दवाइयाँ बेचकर ग्राहकों को लूट रहे हैं। यह प्रथा कानूनी होने के बावजूद अनैतिक और शोषणकारी मानी जा रही है। उपभोक्ता संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि दवाइयों की कीमतों पर कड़ी निगरानी रखी जाए और छूट का लाभ सीधे ग्राहकों तक पहुँचे।
👉 क्या आप चाहेंगे कि मैं इसके साथ एक उपभोक्ता जागरूकता गाइड भी तैयार करूँ, जिसमें बताया जाए कि ग्राहक कैसे छूट माँग सकते हैं और शिकायत दर्ज कर सकते हैं?













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