कर्नाटक कांग्रेस में नेतृत्व संघर्ष तेज़! दिल्ली में खड़गे से विधायकों की मुलाकात ने सियासी हलचल बढ़ाई, जबकि शिवकुमार ने कहा—“मुझे कुछ नहीं पता।”

📰 विस्तृत समाचार रिपोर्ट
नई दिल्ली/बेंगलुरु, 21 नवंबर 2025:
कर्नाटक कांग्रेस में आंतरिक खींचतान एक बार फिर खुलकर सामने आई है। गुरुवार देर रात कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से कर्नाटक के कई विधायक दिल्ली में मिले। इन विधायकों का झुकाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार की ओर माना जा रहा है। बैठक के बाद शिवकुमार ने मीडिया से कहा कि उन्हें इस मुलाकात की कोई जानकारी नहीं है।
🔹 बैठक के मुख्य बिंदु
- छह से दस विधायक खड़गे के आवास पर पहुंचे और कथित तौर पर शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने की मांग रखी।
- विधायकों का कहना था कि 2023 में कांग्रेस की जीत में शिवकुमार की मेहनत अहम रही, इसलिए उन्हें सत्ता में बराबरी का हिस्सा मिलना चाहिए।
- बैठक ऐसे समय हुई जब सिद्धारमैया सरकार ने ढाई साल पूरे किए, और लंबे समय से चर्चा है कि कांग्रेस ने “2.5 साल पावर-शेयरिंग फॉर्मूला” पर सहमति बनाई थी।
🔹 शिवकुमार का रुख
- शिवकुमार ने कहा कि उन्हें दिल्ली बैठक की कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई।
- इससे पहले उन्होंने सार्वजनिक रूप से संकेत दिया था कि वे प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने पर विचार कर रहे हैं, ताकि “दूसरों को भी मौका मिले”।
- उनका यह बयान और बैठक से दूरी यह दर्शाता है कि पार्टी के भीतर संचार की कमी और गुटबाज़ी गहराती जा रही है।
🔹 सिद्धारमैया और हाईकमान की भूमिका
- मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में खड़गे से मुलाकात कर कैबिनेट विस्तार और फेरबदल पर चर्चा की थी।
- सूत्रों के अनुसार, खड़गे ने इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय राहुल गांधी और के.सी. वेणुगोपाल से परामर्श के बाद लेने की बात कही।
- सिद्धारमैया खेमे का मानना है कि सरकार स्थिर है और नेतृत्व परिवर्तन की ज़रूरत नहीं है।
🔹 राजनीतिक विश्लेषण
- खड़गे से विधायकों की मुलाकात को शिवकुमार समर्थक खेमे की ताक़त दिखाने की कोशिश माना जा रहा है।
- वहीं, शिवकुमार का “मुझे कुछ नहीं पता” कहना यह संकेत देता है कि वे फिलहाल सीधे टकराव से बचना चाहते हैं।
- कांग्रेस हाईकमान के सामने चुनौती है कि वह सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच संतुलन बनाए, ताकि सरकार और संगठन दोनों मज़बूत रहें।
✍️ निष्कर्ष
कर्नाटक कांग्रेस में खड़गे की दिल्ली बैठक और शिवकुमार की अनभिज्ञता का बयान यह साफ करता है कि पार्टी के भीतर गंभीर शक्ति संघर्ष और संवादहीनता चल रही है। ढाई साल के पावर-शेयरिंग फॉर्मूले की चर्चा ने इस विवाद को और हवा दी है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि हाईकमान किसे प्राथमिकता देता है—सिद्धारमैया की स्थिरता या शिवकुमार की महत्वाकांक्षा।
















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