Prabhu Sri Krishna 1

श्रीमद्भगवद्‌गीता : हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है। Srimad Bhagavad Gita भगवत गीता में एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और जीवन की समस्यायों से लड़ने की बजाय उससे भागने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत के महानायक थे, अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गए थे, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं।

भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है।

श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान में धर्म से ज्यादा जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को लेकर भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रही है। निष्काम कर्म का गीता का संदेश प्रबंधन गुरुओं को भी लुभा रहा है। विश्व के सभी धर्मों की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में शामिल है।

Srimad Bhagavad Gita
Srimad Bhagavad Gita

Table of Contents

श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्याय-Srimad Bhagavad Gita


Srimad Bhagavad Gitaअर्जुनविषादयोग ~ अध्याय एक
01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों और अन्य महान वीरों का वर्णन
12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का वर्णन
20-27 अर्जुन का सैन्य परिक्षण, गाण्डीव की विशेषता
28-47 अर्जुनका विषाद,भगवान के नामों की व्याख्या


सांख्ययोग ~ अध्याय दो
कर्मयोग ~ अध्याय तीन
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय चार
कर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय पाँच
आत्मसंयमयोग ~ छठा अध्याय
ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय
अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय
राजविद्याराजगुह्ययोग- नौवाँ अध्याय
विभूतियोग- दसवाँ अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग- ग्यारहवाँ अध्याय
भक्तियोग- बारहवाँ अध्याय
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग- तेरहवाँ अध्याय
गुणत्रयविभागयोग- चौदहवाँ अध्याय
पुरुषोत्तमयोग- पंद्रहवाँ अध्याय
दैवासुरसम्पद्विभागयोग- सोलहवाँ अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग- सत्रहवाँ अध्याय
मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय

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